डॉ. ज़ेबा रशीद की पुस्तकें
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  • क्योंकि... औरत ने प्यार किया

    "औरत तो उस रोटी सी होती है जिसे भीतर रख दें तो सूख जाती है, और बाहर रख दें तो कौए लूट लेते हैं।"

     

    "औरत... जन्म देती है... फिर भी... माँ... बेटी... बहन... पत्नी... हर रूप में क्यों सताई जाती है औरत....?"

     

    "औरत.... क्यों सुरक्षा और सर की छत के लिए जीवन भर गृहस्थी के पट्टे पर हस्ताक्षर करती है?"

     

    "औरत... सारी उम्र दूसरों के लिए ही तो जीती है। जन्म लेती है..कहीं जन्म लेने का ऋण चुकाती है। कहीं विवाह होने का, ....तो कहीं गृहस्थी का। सदा दूसरों की इच्छाओं का टोकरा लादे फिरती है। क्योंकि औरत ने प्यार किया...

    करती है..... करती रहेगी.......  "  

      -ज़ेबा रशीद