मेरे सनम

सुशी सक्सेना

"दिल में दरिया है दर्द का,
जो लफ़्ज़ों में बहता है।
लिख देते हैं फ़साना ख़ुद का.
और ग़ज़ल बन जाती है।"

दर्द देने वाला कोई बाहर वाला नहीं होता है। ग़म हो या ख़ुशी सब कुछ आपके अपनों से ही मिलता है। हमारी ज़िंदगी में सुख दुःख और लोगों का मिलना बिछ्ड़ना तो चलता ही रहता है। इन सभी घटनाक्रमों के बीच हमारे दिलो-दिमाग़ में जो अहसास और जज़्बात घूमते रहते

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