"ख़ुमारी" की ग़ज़लें संपूर्ण जीवन की ग़ज़ले हैं। राजनैतिक मुद्दे, धार्मिक विडम्बनाएँ, व्यक्तित्व के प्रश्न, प्रेम, बिछोह, मिलन यानी कि मानव जीने के लिए जिन गलियों में से गुज़रता है, जसबीर की ग़ज़लें भी उन्हीं गलियों से गुज़रती हैं। "ख़ुमारी" का हरेक शे’अर उम्दा है। हर भाव में कसक है, हर प्रश्न सोचने पर मजबूर करता है, पढ़ते हुए पाठक को लगता है कि उसका सीधा संवाद लेखक से हो रहा है। जसबीर कालरवि के संपूर्ण साहित्य पर चाहे कविता हो, उपन्यास हो या ग़ज़ल, एक दार्शनिक बोध की छाया होती है, जो कि उनके व्यक्तित्व से उपजती है। आशा है कि आप इस शायर को उत्साह से पढ़ेंगे क्योंकि:
हो गर दिल की धड़कन बयां उँगलियों से।
तभी काग़ज़ों पर उतरती ख़ुमारी॥