प्रमोद यादव की पुस्तकें
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  • नेता के आँसू

    नेता के आँसू से ....
    एक दिन अख़बारों में एक चौंका देनेवाली ख़बर छपी कि नगर में धड़ल्ले से नेताजी के नक़ली आँसू असली दामों में बेचे जा रहे हैं। इस समाचार से भूचाल-सा आ गया। श्रद्धालु जनता की आस्था पर यह करारी चोट थी। लोगों ने सरकार को चेतावनी दी कि नक़ली आँसुओं के विक्रेताओं को तुरंत गिरफ़्तार करें और कड़ी से कड़ी सज़ा दें। सरकार सक्रिय हुई मगर नतीजा शून्य रहा। लोगों की उत्तेजना बढ़ती गयी। सरकार ने एक पाँच सदस्यीय आयोग की स्थापना की और इस मामले की तफ़्तीश शुरू हुई। आयोग ने सबसे पहले चंद गवाहों की मौजूदगी में नेताजी के असली आँसुओं को इकठ्ठा किया फिर ऐसी सौ शीशियाँ इकट्ठी कीं जिनके नक़ली होने का संदेह था। ये सौ शीशियाँ और असली के नमूने लेबोरेटरी टेस्ट को भेज दिए गए। वैज्ञानिक गण इन आँसुओं पर परीक्षण करते रहे और लोगों की उत्तेजना नए-नए रंग लाती रही...