अशोक परूथी "मतवाला" की पुस्तकें
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  • अंतर

    अनिता चुप रही। बस, सिसकने लगी और सारी बात उसकी सिसकियों ने ज़ाहिर कर दी।
     "फिर दोनों हालातों में फ़र्क ही क्या है, कितना अंतर है?" यही प्रश्न रह-रहकर अनिता को झँझोड़ रहा था। और न जाने कब तक निरुत्तर-सी, अनिता, दुनिया से बेख़बर चारपाई पर औंधी पड़ी रही। 
    - (अंतर)
    ***
    "अस्मिता बेटी देखो, हमारी बात को ज़रा ध्यान से सुनो.. लड़का तबीयत का अच्छा है, पढ़ा-लिखा है और अच्छे परिवार से उसका ताल्लुक़ भी है... और हम यह भी महसूस करते हैं और समझते हैं कि तुम अकरम से अपना रिश्ता जोड़ चुकी हो, लेकिन... यह सब ख़ुदा की मर्ज़ी है। हालातों को मद्देनज़र करते हुये हमें यह नहीं लग रहा कि यह निक़ाह मुमकिन है। 
    ***

    दो दिल मिले, जुड़े, टूटे, बिखरे एक बार फिर मिले… यूँ मिले कि फिर ख़ुदा भी उन्हें एक दूसरे से अलग न कर सका!
    - (पिंजरे के पंछी)

    ***
    जवाब में किसान फूट पड़ा, "भागवान, ईश्वर अपनी 'फ्लैश लाईट' जलाकर देख रहा है कि मुझ गरीब का कोई पौधा पानी में डूबने से तो नही रह गया!"
    - (बिजली चमकने का रहस्य?)
    ***
    आनन्द की दृष्टि उससे हट कर सामने बरामदे में फटे और मैले-कुचैले कपड़ों में लिपटी एक 25-28 वर्षीया दुबली-पतली अधेड़ युवती पर पड़ी। युवती की तरसती आँखों में एक उम्मीद की झलक नज़र आती थी - किसी से कुछ मिलने की उम्मीद - और पेट में उसके भूख थी। न जाने पिछली बार कब उसने पेट-भर खाना खाया था? उसकी गोद में मटमैले रंग का एक मासूम बच्चा भी था जो उसकी खाली छातियों को नोच रहा था! 
    - (भूख)
    ***

    …और इस स्कल्प के साथ करीम खाँ लौट रहा था...अपने घर की और...सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत करके बाकी का अपना जीवन बसर करने के लिये! 
    - (मजबूरी)
    अशोक परूथी "मतवाला"