उत्तम टेकड़ीवाल की पुस्तकें
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  • दर्शन

    प्रेम के असीम दरिया के पार है मंज़िल तेरी,
    डूबकर मर-मिटने से दिले नादान क्यों घबराते हो?
    समर्पण का तिनका ही ले जाएगा भवसागर के पार,
    दिल के दर्पण में ईश्वर की परछाइयाँ क्यों बनाते हो?​

    - दर्शन

    हार कर अस्तित्व अपना, जो सर्वस्व पाता है,
    जो हरे हर तम को, वो हरि कहलाता है।

    - राम हरे कृष्ण

     

    साँसों की आरी काट रही है,
    मन पर पड़ी पत्थर की चादर।
    हर आती साँस लाता मेहर ख़ुदा का,
    ले जाती है अहम्, लालच और डर।

    - साँसों की आरी

    ये किसे मार रहे हैं खेतों में विष पाटकर,
    घर बने या कितने उजड़े पेड़ों को काटकर,
    ये क्यों लड़ रहे धरती को टुकड़ों में बाँटकर,
    पराए बनाते हैं क्यों हमें, अपनों से छाँटकर।

    - प्रगति