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ज़िंदगी की परिभाषा
मेरे दिल में भी बहुत सारी बातें थीं जो किसी से कहना तो चाहते थे पर कह नहीं पाए। इससे पहले की मेरी ज़िन्दगी की परिभाषा बदले मैंने उसके लिए काग़ज़ क़लम का सहारा लिया और अपने दिल की सारी बातें उसमें लिख डालीं जिससे दिल को आराम भी मिल गया और ये किताब भी बन गई। इसमें मैंने कुछ ऐसी आँखों देखी और कुछ पढ़ी हुई कहानियों को सम्मिलित किया है जिन्होंने मेरे दिल को झकझोर कर रख दिया। ये कहानियाँ हमारी ज़िन्दगी की वास्तविक झाँकियाँ प्रस्तुत करती हैं। और साथ ही इसकी हर कहानी आपको ज़िन्दगी की एक नई परिभाषा सिखाती है।
– सुशी सक्सेना
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मेरे सनम
"दिल में दरिया है दर्द का,
जो लफ़्ज़ों में बहता है।
लिख देते हैं फ़साना ख़ुद का.
और ग़ज़ल बन जाती है।"दर्द देने वाला कोई बाहर वाला नहीं होता है। ग़म हो या ख़ुशी सब कुछ आपके अपनों से ही मिलता है। हमारी ज़िंदगी में सुख दुःख और लोगों का मिलना बिछ्ड़ना तो चलता ही रहता है। इन सभी घटनाक्रमों के बीच हमारे दिलो-दिमाग़ में जो अहसास और जज़्बात घूमते रहते हैं उन्हें एक माला की तरह शब्दों में पिरोते रहने का प्रयास करें तो वो कविता बन जाती है।