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क्षमा करना पार्वती
आधुनिक समाज के मानवीय संबंधों में जीवन के अर्थ खोजती, जीवन का उत्सव मनाती और दैनिक जीवन से संघर्षरत पात्रों की कहानियाँ - जिनसे आप स्वयं को जुड़ा हुआ पाएँगे - सुमन कुमार घई संपादक - sahityakunj.net
यह कहानियाँ मात्र कहानियाँ नहीं है, यह सुख - दुख के साथ जिया गया जीवन है। इन कहानियों में कहीं न कहीं आप ख़ुद को ढूँढ़ पाएँगे बस इतना कह सकता हूँ। मन के किसी भी कोने में यदि ये कहानियाँ आपके सोये हुये जज़्बात को जगा पायीं तो मैं अपने लेखन को धन्य समझूँगा।
- मुरली श्रीवास्तव -
गुरु गूगल दोऊ खड़े
आज के ज़माने में गुरु का हाल देख कर दिल दहल उठता है। तुलसी दास जी ने लिखा है “मातु पिता अरू गुरु की बानी/बिनहि विचार करिय शुभ जानी” पर लगता है इस चौपाई में से अब गुरु को बाहर निकालने का समय आ गया है। आज गुरु पर भरोसा करना शिष्य को भारी पड़ सकता है। गुरु गुरुता खो चुके हैं। इतना ही नहीं आज गुरु के न जाने कितने विकल्प आ गये हैं। ऐसे में जब मैं गूगल को देखता हूँ तो मुझे आशा की नई किरण दिखाई देती है। और तब अनायास हृदय में विचार उठता है “गुरु गूगल दोऊ खड़े काके लागूँ पाय”। सवाल यह है कि गूगल बड़ा है कि गुरु। और जवाब किसी भी बच्चे से पूछ लीजिये वह छूटते ही बता देगा।