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रूहदारी
कई बार व्यथा इतनी प्रगाढ़ होती है कि लिखते समय, मन, आँखें, भाव, सम्वेदनाएँ, अल्फ़ाज़, क़लम और पन्ने, ये सब इतने पुरनम और पुरअश्क़ होते हैं और वे किस शक्ल में ढलते जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जब ज्वार थमता है, तब मालूम पड़ता है कि कविता या क़िस्सा क्या बन कर आया!
– डॉ. दीप्ति गुप्ता
Author's Info
पुणे, महाराष्ट्र
आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए.(हिन्दी) एम.ए.(संस्कृत) पी.एच-डी (हिन्दी)।
रुहेलखंड विश्वविद्यालय,बरेली, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली एवं पुणे विश्वविद्यालय, पुणे, में अध्यापन-रत रही।
वर्ष 1989 में ‘मानव संसाधन विकास मंत्रालय’, नई दिल्ली में ‘शिक्षा सलाहकार’ पद पर तीन वर्ष के डेप्युटेशन पर राष्ट्रपति द्वारा, नियुक्ति (1989 -1992)!
हिन्दी और अग्रेजी में कहानी, काव्य, समीक्षा, अनुवाद, आलेख आदि विधाओं की 25 कृतियाँ!
इन कृतियों पर विभिन्न संस्थानों द्वारा सम्मानित।
अंग्रजी काव्य-संग्रह का जर्मन, फ्रेंच, रूसी, किर्गीज, चाइनीज,स्पेनिश, इटेलियन आदि भाषाओं में अनुवाद और पुस्तक रूप में विदेशी प्रेस द्वारा प्रकाशन।