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अम्बर बाँचे पाती
... साँझ और रात भी कम सुन्दर नहीं। साँझ होते ही स्वर्णिम धूप के पन्ने गुलाबी होने लगे हैं, कहीं सिन्दूरी साँझ होने पर आकाश का लोहित होना और धूप का लेटना, घुली चाँदनी का आँगन के कसोरे में उतरने का रूपक, सर्द चाँदनी का रात भर चुम्बन उलीचना अभिव्यक्ति सौन्दर्य में रंग भर देते हैं-
- साँझ ढली तो / स्वर्ण धूप के पन्ने / हुए गुलाबी।
- सिंदूरी साँझ / गगन है लोहित /
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दर्शन
प्रेम के असीम दरिया के पार है मंज़िल तेरी,
डूबकर मर-मिटने से दिले नादान क्यों घबराते हो?
समर्पण का तिनका ही ले जाएगा भवसागर के पार,
दिल के दर्पण में ईश्वर की परछाइयाँ क्यों बनाते हो?- दर्शन
हार कर अस्तित्व अपना, जो सर्वस्व पाता है,
जो हरे हर तम को, वो हरि कहलाता है।- राम हरे कृष्ण
साँसों की आरी काट रही है,
मन पर -
शृंगबेरपुर की कथा
शृंगबेरपुर इलाहाबाद जिले के प्रयाग स्टेशन से रायबरेली जाने वाली ईआई रेलवे लाइन में स्थित "रामचौरा रोड" नामक रेलवे स्टेशन से डेढ़ मील की दूरी पर स्थित है जो प्रयाग से 20 मील (36 किलोमीटर) उत्तर पश्चिम गंगा के उत्तर तट पर ऊँचे टेकरे पर बसा है। यहाँ पर सिंगरौर और शृंगबेरपुर ये दो स्थान आधा मील के अन्तर पर स्थित है।
इस स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है परन्तु यह भारत
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ठगिनी और अन्य कहानियाँ
रातों के साथ जाने कितने राज़ जुड़े होते हैं। इसी लिये रातों के क़िस्से हमेशा दिलचस्प हुआ करते हैं। लेकिन रातों के अक्सर क़िस्से रातों की तरह स्याह हुआ करते हैं। रात की तारीक़ी में अक्सर, एक दूसरी ही जमात रिज़्क़ की तलाश में निकलती है। यह जमात भी दिन में कारोबार करने वाली जमातों से मिलती-जुलती, लेकिन कई बार बिल्कुल अलग होती है। इनके कारोबार भी
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मन की पीर
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पोस्टर की पंक्तियाँ पढ़ते हुए संतो ने प्रण किया कि अगर उसे जीत हासिल हुई तो वह अवश्य ही इन सब बातों को पूरा करेगी। इसी के साथ उसे उस दिन की घटना याद हो आई जब दद्दन भइया उसके द्वार पर आये थे और उसे ख़ूब खरी-खोटी सुनाकर वापस लौटे थे। उससे उसे बड़ा दुःख हुआ और शायद नफ़रत भी। वह दद्दन की बड़ी इज़्ज़त करती थी। उन्होंने उस पर बड़े एहसान