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मेरे सतरंगी सपने
शब्द साहित्य का ज्ञान जब आत्मा में प्रतिध्वनित होकर काग़ज़ पर शब्द का रूप लेता है तो, वह सर्जन काव्य कहलाता है। जब मन में विचारों के बादल घुमड़ते हैं तो, सहज ही लिखना अनिवार्य हो जाता है। यह सिर्फ़ एक काव्य संग्रह नहीं बल्कि मेरा सपना है। मेरे मन से निकली आवाज़ है, मैंने उसे अपने काव्य-रूपी माला में पिरोने का प्रयास किया है।
— रीता तिवारी ’रीत’
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कामनाओं का कुहासा
मैं 1997 से 2000 तक राजस्थान सिन्धी अकादमी का अध्यक्ष था। ‘कामनाओं का कुहासा’ उस कालावधि में हुए कार्यकलापों, आत्ममंथन, आत्मविश्लेषण और दृष्टि पर आधारित उपन्यास है। लेखा-जोखा, रपट या संस्मरण मानकर रचना के उपन्यास तत्त्व को इसलिये गौण नहीं मानना चाहिये क्योंकि उस समय जो नहीं हुआ या नहीं घटा या तकनीक ने जिसे स्पर्श नहीं किया था उसका समावेश भी उपन्यास में हुआ है।
— भगवान अटलानी
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चाण्डाल-चौकड़ी
मोहनजी –
[क़िले के सामने नज़र दौड़ाते हुए] – अरे ठोकिरा कढ़ी खायोड़ा मेहरान गढ़ के क़िले, तू कहाँ जा रिया है...?
लाडी बाई –
[ग़ुस्से से बेक़ाबू होकर, कहती है] – कहीं नहीं जा रहा है, यह जोधपुर का क़िला। कल जहाँ था, आज भी वहीं है।
मोहनजी –
क्या कहा, आपने?
लाडी बाई –
मारवाड़ के लोगों की हालत यह है, कि इस जोधपुर के क़िले -
रूहदारी
कई बार व्यथा इतनी प्रगाढ़ होती है कि लिखते समय, मन, आँखें, भाव, सम्वेदनाएँ, अल्फ़ाज़, क़लम और पन्ने, ये सब इतने पुरनम और पुरअश्क़ होते हैं और वे किस शक्ल में ढलते जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जब ज्वार थमता है, तब मालूम पड़ता है कि कविता या क़िस्सा क्या बन कर आया!
– डॉ. दीप्ति गुप्ता
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रात भर जागने से क्या हासिल
अखिल साहब के कलाम के हर शेर में एक मुकम्मल किताब का मनसूबा है। और हर शेर किसी ख़ास शख़्स से मंसूब नहीं बल्कि हम सब से मंसूब है। वे अपने एक शेर में मेरी बात ख़ुद ही कहते हैं:
"हर इक ज़र्रे में गौहर देखता हूँ
मैं क़तरे में समंदर देखता हूँ"
– डॉ. अफ़रोज़ ताज