सामाजिक
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  • लाश व अन्य कहानियाँ

    “अरे, यह तो कोई देसी है। देख तो पायल पहने है।”
    “हाय नी! देसी ब्लाँड! ज़रूर ही आवारा है।”
    “ऐंवे ही आवारा-आवारा की रट लगा रही है तू! कैसे जानती है तू कि यह आवारा है?”
    “देखती नहीं तू इसके ब्लाँड बालों को। देसी औरत और ब्लाँड बाल!” पहली ने अपना तर्क दिया।
    “तो क्या बाल रँगने से आवारा हो गयी वो... तू भी तो मेंहदी लगा कर लालो-परी बने घूमती

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