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उसने लिखा था
भारत में 1960 का दशक स्वप्नभंग तथा कठोर यथार्थ से संघर्ष का रहा। चीन तथा पाकिस्तान से युद्ध, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री का निधन, अकाल, ग़रीबी - भारतवासी अब देशभक्ति के अतिरिक्त व्यक्तिगत स्वार्थ के बारे में भी चिंतित होने लगे। इस काल में विद्याभूषण ’श्रीरश्मि’ की रचनाएँ अत्यंत प्रचलित हुईं। ’उसने लिखा था’ में सम्मिलित हिन्दी अकादमी पुरस्कार सम्मानित ’श्रीरश्मि’ की दस कहानियाँ निर्दोष हास्य, व्यंग्य, आध्यात्म, प्रणय, आडंबर, स्वार्थपरता, स्नेह, स्वाभिमान, देशभक्ति इत्यादि भावों से मन मोह लेती हैं।
अन्दर-ही-अन्दर मेरा मन बख्शी-दम्पति से बेहद खट्टा हो चुका था। हर बात में अतिशयोक्ति, हर काम कॉम्प्लेक्स से भरा हुआ। आखिर, आदमी कब तक ख़ाली लिफ़ाफ़े को भरा बताए, और सिर्फ भरा ही न बताए, उसके मजमून के काल्पनिक वर्णन को सुन-सुन कर दाद भी देता रहे। - कहानी ’आवरण’ से
“ये अफ़सर, पता नहीं, क्या समझते हैं अपने-आपको! चार टके के नौकर और लाख रुपये के आदमी की इज़्ज़त उतार लें? बी. डी. ओ. को तो मैं बदलवा ही दूँगा, और ज़रूरत हुई तो एस. डी. ओ. को भी।” - नेताजी ने पहलवानजी को आश्वासन दिया। - कहानी ’मुँह चिढ़ाता आईना’ से
“मैं रिज़ाइन इसलिए थोड़े ही कर रहा हूँ कि मुझे सम्पादक नहीं बनाया गया। रिज़ाइन तो इसलिए कर रहा हूँ कि अपने मुक़ाबले में कहीं अयोग्य आदमी के नीचे काम नहीं कर सकता।” - हरिवल्लभ की आँखों से स्वाभिमान झाँक रहा था। - कहानी ’पैबन्द’ से
नानीजी बड़ी गम्भीरता से बोलीं - “वह साधु बाबा मुझे देखते ही कहने लगे कि तुम्हारी एक सास कम्पोटराइन मेरे पास कुछ साल पहले आयी थी; वह पहले जन्म में सूअर थी और अगले जन्म में मेहतरनी बनेगी। ... “ - कहानी ’दुश्मन’ से
जवाब मिला - “आज दिन में ही क्या देखा कि पिल्लै नंग-धड़ंग अपनी बीवी के पीछे-पीछे दौड़ रहा है और वह बेशर्म केवल पेटीकोट पहने, ऊपर से बिल्कुल नंगी, भागी फिर रही है। अगर सुषमा ने, या कि कट्टू-बट्टू ने ही, देख लिया होता, तो? यह तो बड़ी बुरी बात है।” - कहानी ’असभ्य लोग’ से
उसकी विधवा माँ ने आँखों में आँसू भर कर जब उससे कहा कि ग़रीबी प्रोफ़ेसर बनने से कहीं पहले उसे निरावरण करके बाज़ार में खड़ा कर देगी, तब वह निरुत्तर हो गयी और अपने से तिगुनी वय के पचकौड़ी की तीसरी बहू बन कर उसे इस मकान में आना पड़ा - कहानी ’दिया जले भिनसार’ से
“तब, सुन लो!” - उनके इन तीन शब्दों ने मुझे आगाह कर दिया कि मेघों का उमड़ना-घुमड़ना समाप्त हो गया है - अब केवल बिजलियाँ चमकेंगी और उसके बाद इतनी ज़ोर से पानी बरसेगा कि मैं डूबने-उतराने लगूँगा। वही हुआ भी। - कहानी ’सब्ज़ी सस्ती मिलती है’ से
सुखतारा ने कहा - “मेरा सुलेमान फ़ख़्र की मौत मरा है। मैं उसके बदले में रुपये लेकर उसकी शानदार मौत को नीचा दिखाऊँ? यह मुझसे न होगा। वतनपरस्ती की सौदाई भले लोग नहीं करते।” - कहानी ’सुखतारा’ से
इरा हम दोनों की उपभोग्या थी। वह विजित वस्तु थी और हम दोनों विजय के साझीदार! हमारा बराबर का हक़ था उस पर। लोग शायद थूकेंगे मुझ पर, यह वृत्तान्त सुन कर। ऐसे पति के साथ भला किसकी सहानुभूति होगी! लेकिन यदि पत्नी मिली ही इस शर्त पर हो, तो? - कहानी ’बिथा मैं कासे कहूँ’ से
अचानक देवदूत चमक पड़ा। बड़ी तेज़ी से एक प्रकाश-पिंड उठा आ रहा था। उद्यान में जमा असंख्य आत्माएँ और देवदूत उधर ताकने लगे। कुछ क्षणों में ही प्रकाश-पिंड पूर्वोक्त तीसरी आत्मा के पास आ कर रुक गया। - कहानी ’प्रेम परीक्षा’ से