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लाश व अन्य कहानियाँ
“अरे, यह तो कोई देसी है। देख तो पायल पहने है।”
“हाय नी! देसी ब्लाँड! ज़रूर ही आवारा है।”
“ऐंवे ही आवारा-आवारा की रट लगा रही है तू! कैसे जानती है तू कि यह आवारा है?”
“देखती नहीं तू इसके ब्लाँड बालों को। देसी औरत और ब्लाँड बाल!” पहली ने अपना तर्क दिया।
“तो क्या बाल रँगने से आवारा हो गयी वो... तू भी तो मेंहदी लगा कर लालो-परी बने घूमती
Author's Info
जन्म: १९५२, अंबाला (हरियाणा) में
बचपन खन्ना और लुधियाना (पंजाब) में बीता। गवर्नमेंट कॉलेज लुधियाना से बी.एससी. के बाद १९७३ में कैनेडा को प्रवास।
१९७५ से १९८१ तक कंप्यूटर क्षेत्र में कार्य। १९८१ से २०१० तक पारिवारिक व्यवसाय (फ़ैक्ट्री) संचालन के बाद सेवा निवृत्ति।
साहित्य में बचपन से रुचि परन्तु औपचारिक तौर पर लेखन इंटरनेट के उद्भव के बाद। हिन्दी नेस्ट.कॉम, अनुभूति-अभिव्यक्ति में रचनाओं के प्रकाशन से प्रवासी लेखक के रूप में छवि का विकास। भारत के कई संकलनों में कहानियाँ, कविताएँ, आलेख, समीक्षाएँ और साक्षात्कार प्रकाशित।
कैनेडा में हिन्दी साहित्य सभा के भूतपूर्व महासचिव, हिन्दी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक। लगभग चार वर्ष तक अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्यिक पत्रिका हिन्दी चेतना का सहसंपादन, कैनेडा के साप्ताहिक समाचर पत्र हिन्दी टाइम्स का चार वर्ष तक संपादन।
२००३ से साहित्य कुंज.नेट का प्रकाशन व संपादन। पुस्तक बाज़ार.कॉम के संस्थापक, प्रकाशक और संपादक।
ई-मेल: [email protected]