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स्मृति-मंजूषा
प्रवासी भारतीयों का अपना एक संसार है। उनकी जीने की अपनी एक शैली है। लाखों नहीं करोड़ों की आबादी विदेशों में प्रवासी भारतीय के रूप में वहाँ की ज़मीन पर बसी है। कहीं पहली पीढ़ी है कहीं दूसरी या तीसरी पीढ़ी है। सबकी अपनी एक शैली है। वहाँ के होकर वहाँ का न होना, बच्चों को वहाँ रखकर, उन्हें वहाँ के प्रभावों से बचाये रखने का प्रयत्न करना, भारत से दूर उन्हें भारतीय बनाये रखना,
Author's Info
अध्यक्ष ‘ज्ञान प्रसार संस्थान’
पूर्व अध्यक्ष, उ. प्र. पुलिस कल्याण संस्थान; साहित्यकार एवं गीतकार
प्रकाशन-
कहानियाँ: दादी माँ का चौरा, पटाक्षेप, मानस की धुंध, हैं आस्मां कई और भी, शांतिधाम, आलसी गीदड़
कवितायें: गाती जीवन वीणा, गुनगुना उठे अधर
उपन्यास: कालचक्र से परे
संस्मरण: निष्ठा के शिखर बिंदु, कुछ अपनी कुछ जग बीती
साक्षात्कार: अशरीरी संसार
यात्रा वृत्तांत: स्मृति मंजूषा, स्विटज़रलैण्ड के वे 21 दिन
संकलन: रुहेलखंड के परम्परागत लोकगीत
सम्मान एवं पुरस्कार: लगभग तीन दर्जन
अन्य: एमरी यूनिवर्सिटी, जोर्जिया, अमेरिका द्वारा प्रशस्ति पत्र; एम. फिल. डिग्री हेतु छात्र द्वारा शोध कार्य (नीरजा द्विवेदी के साहित्य पर); ‘साहित्यकार द्विवेदी दम्पति’ शीर्षक साहित्यिक-मूल्यांकन ग्रंथ
यात्राएँ: शतो द लाविनी /स्विट्ज़रलैंड/ में 21 दिन की रेज़ीडेंसी
111 सर्वश्रेष्ठ हिंदी लेखिकाओं में चयनित... "द संडे इंडियन"
विश्व हिंदी सम्मेलन, न्यूयार्क- 2007
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, दुबई. 2013, चीन, 2014, मिस्र 2016
ई-मेलः [email protected]