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क्या तुमको भी ऐसा लगा
कवि की मानसिकता पारदर्शी शीशे की तरह होती है। उसकी सारी भावनाएँ, संवेदनाएँ, धारणाएँ कुछ भी छिपते नहीं हैं बल्कि लेखन में उभर कर सामने आते हैं। डॉ. शैलजा सक्सेना की पुस्तक "क्या तुमको भी ऐसा लगा?" में आप पाएँगे कि शैलजा साधारण कवियत्री नहीं है। किसी भी समस्या के लिए भिन्न दृष्टिकोण या अनुभव की प्रतिक्रिया शैलजा की प्रकृति है। परन्तु डॉ. शैलजा की काव्य शैली और भाषा इतनी सहज है कि कविता
Author's Info
डॉ. शैलजा सक्सेना ने दिल्ली विश्वविद्याल से पी.एचडी. की। शैलजा साहित्य की सभी विधाओं में लिखती हैं। उनकी कविताएँ दैनिक जीवन से संबंधित होती हैं जिनमें पारिवारिक संबंधों से लेकर देश समाज की बात वह बहुत ही प्रभावशाली ढंग से करती हैं। भाषा सरल व भावों गहराई लिए उनकी कविता की अपनी एक अलग पहचान है। डॉ. शैलजा सक्सेना एक सिद्धहस्त कहानीकार भी हैं। कविता की तरह उनकी पाठक से जुड़ कर उसके अंतस को टटोलती हैं। आजकल कैनेडा में निवास करती हुई भी वह विश्व हिन्दी जगत से जुड़ी हुई हैं और कैनेडा की संस्था हिन्दी राइटर्स गिल्ड की संस्थापक निदेशिका हैं। उनकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। [email protected]