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कुछ ज्ञात कुछ अज्ञात
लगता है कहाँ - कहाँ से बीत जायेगा जीवन
आजीवन खोजता ही रहूँगा अस्तित्व अपना
बोध होगा अपनत्व मेरी रिक्ति का
दुनिया को जब, तब मैं न होऊँगा
होगा मेरा अस्तित्व -
पर मैं अनभिज्ञ ही रहूँगा!!
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नंगी जलाई लाशें, कफ़नों का करके सौदा,
अपना है या पराया, कुछ भी न तूने सोचा,
तू भी बनेगा मिट्टी, अंजाम यही है!
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ताण्डवी
Author's Info
आपका जन्म दिल्ली में 1952 में हुआ था । कविता लिखने का शौक बचपन से ही रहा है, शायद 14-15 वर्ष की उम्र से । दिल्ली से विज्ञान में स्नातक तक की पढाई करने के बाद आपने अपनी कविता में निखार लाने के लिए हिंदी में एम.ए. किया और फिर पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की । 1972 में सरकारी नौकरी शुरू करके 2012 में निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए । इस बीच अनेकों कविताओं की रचना की, जिन्हें इनके ब्लोगों https://anilchadah.blogspot.com, https://anubhutiyan.blogspot.in पर पढ़ा जा सकता है । इनकी रचनायें साहित्यकुञ्ज, शब्दकार एवं हिन्दयुग्म जैसी ई-पत्रिकाओं के अतिरिक्त सरिता, मुक्त, इत्यादि पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं ।
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