दर्शन
प्रेम के असीम दरिया के पार है मंज़िल तेरी, - दर्शन हार कर अस्तित्व अपना, जो सर्वस्व पाता है, - राम हरे कृष्ण साँसों की आरी काट रही है,
डूबकर मर-मिटने से दिले नादान क्यों घबराते हो?
समर्पण का तिनका ही ले जाएगा भवसागर के पार,
दिल के दर्पण में ईश्वर की परछाइयाँ क्यों बनाते हो?
जो हरे हर तम को, वो हरि कहलाता है।
मन पर