आरोहण
ज़मींदारी व्यवस्था समाप्त होने के बाद भी अपने विभिन्न रूपों में अभी भी अपने स्वार्थ साधने के लिए ग्रामीण और आदिवासी राजनीति पर अपनी जकड़ को ढीला नहीं करना चाहती। सुदर्शन सोनी का यह उपन्यास भ्रष्टाचार की तिकड़ी, राजनीति, पुलिस और ज़मींदारी व्यवस्थाओं की सच्चाइयों को उघाड़ता है।