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चाण्डाल-चौकड़ी
मोहनजी –
[क़िले के सामने नज़र दौड़ाते हुए] – अरे ठोकिरा कढ़ी खायोड़ा मेहरान गढ़ के क़िले, तू कहाँ जा रिया है...?
लाडी बाई –
[ग़ुस्से से बेक़ाबू होकर, कहती है] – कहीं नहीं जा रहा है, यह जोधपुर का क़िला। कल जहाँ था, आज भी वहीं है।
मोहनजी –
क्या कहा, आपने?
लाडी बाई –
मारवाड़ के लोगों की हालत यह है, कि इस जोधपुर के क़िले -
रूहदारी
कई बार व्यथा इतनी प्रगाढ़ होती है कि लिखते समय, मन, आँखें, भाव, सम्वेदनाएँ, अल्फ़ाज़, क़लम और पन्ने, ये सब इतने पुरनम और पुरअश्क़ होते हैं और वे किस शक्ल में ढलते जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जब ज्वार थमता है, तब मालूम पड़ता है कि कविता या क़िस्सा क्या बन कर आया!
– डॉ. दीप्ति गुप्ता
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रात भर जागने से क्या हासिल
अखिल साहब के कलाम के हर शेर में एक मुकम्मल किताब का मनसूबा है। और हर शेर किसी ख़ास शख़्स से मंसूब नहीं बल्कि हम सब से मंसूब है। वे अपने एक शेर में मेरी बात ख़ुद ही कहते हैं:
"हर इक ज़र्रे में गौहर देखता हूँ
मैं क़तरे में समंदर देखता हूँ"
– डॉ. अफ़रोज़ ताज -
वह अब भी वहीं है
हर उपन्यास, कहानी के पीछे भी एक कहानी होती है। जो उसकी बुनियाद की पहली शिला होती है। उसी पर पूरी कहानी या उपन्यास अपनी इमारत खड़ी करता है। यह उपन्यास भी कुछ ऐसी ही स्थितियों से गुज़रता हुआ अपना पूरा आकार ग्रहण कर सका
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संभावनाओं की धरती - कैनेडा गद्य संकलन
कैनेडा के गद्य संकलन ’संभावनाओं की धरती’ में गद्य की अनेक विधाओं के समर्थ भविष्य का संभावना चित्र उकेरते २१ लेखक आपको दिखाई देंगे।ये गद्य रचनाएँ आप्रवासी भारतीयों के संघर्ष और शक्ति, सुख और दुख, अकेलेपन से मित्र-समूह बनाने और नए समाज में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाने तक की यात्राओं के अनुभवों को दिखाती हैं।